पेकिंग दूर दिल्ली नजदीक है :

"दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक है" "चीन से मुक्तिवाहिनी आ रही है हमें आज़ाद कराने" जैसे नारों के गर्भ ठहरने की कल्पना में भूल कर भी मत डूबने की कोशिश करना भारतीय वामपंथियों और पाखंडी शुद्धतावादियों जब तुमने भारत-चीन युद्ध साल 1962 के दौरान कलकत्ता और बंगाल भर में 'दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक' बोल के कहा 'चीन से मुक्ति वाहिनी आ रही है'!

क्योंकि अभी हाल दिल्ली नजदीक है आंकड़ों में। 

तीन भारतीय शहीदों के सामने 5 चीनी मरे हैं, घायलों की संख्या ग्यारह से आगे समाचारों में पढ़ते रहने की जरूरत है।

देश की विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकारों के राजनैतिक विरोध, नारों आदि पर कभी गंभीरता की जरूरत नहीं ये लोकतंत्र के गहने हैं.. श्रृंगार हैं। लेकिन जो मानसिकताएं देश को.. उसके किसी भूभाग को उससे दूर रखने की कल्पना भी करती हों उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए और याद दिलाना चाहिए कि दिल्ली इस बार और भी बहुत तरीकों से नजदीक है :

- इस दफा न भारतीय सेना ने पीटी शू पहने हैं न ही देश के रक्षा कारखाने चीनी मिट्टी के कप-प्लेट, खिलौने बना रहे बल्कि.. पूर्वोत्तर अरुणाचल से लेकर उत्तर तक एलएसी पर फ्रंट लाइन पोजिशन में तैनात है।

- बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) 1990 के दशक में अटल जी की सरकार के रक्षा मंत्री स्व. जार्ज फर्नांडीज द्वारा भारत-चीन सीमा पर 61 स्ट्रेटजिक रोड (भारी सैन्य अभियानों के लिए मुफ़ीद) बनाने के आखिरी और चौथे पहर में लद्दाख की गलवान घाटी में है। 90 में 272 सड़कों में से 3323.57 किमी की लंबाई की 61 सड़कों की पहचान रणनीतिक तौर पर की गई। इसमें से 2304.65 किमी पर 2019 तक काम पूरा हो चुका। 

अभी झगड़े वाले 255 किलोमीटर लंबे दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के पास पैंगोंग सो और डेमचोक से पीछे जाने के लिए चीन सड़क पर काम बंद करने के लिए अड़ा। भारत नहीं माना इसका नतीजा गोलीबारी। इसी सड़क की ऊपरी मंजिल दौलत बेग ओल्डी में भारतीय वायुसेना सेना तैनात है जिसके सामने चीन हमेशा घाटे में रहने वाला है। इस सड़क के बन जाने से लेह और दौलत बेग ओल्डी के बीच की दूरी महज छह घंटे में पूरी हो जाएगी जिसके ठीक बाद सियाचिन क्षेत्र शुरू होता है। 

इस देश को याद रहेगा कि कामरेडी फितरत के वीके मेनन (नेहरू जी के मित्र, कैबिनेट के रक्षा मंत्री) के आशीर्वाद और रक्षा तैयारियों की बदौलत.... कबड्डी खेलने वाले पीटी शू (कपड़े के जूते) पहन कर उन दुर्गम मोर्चों पर सेना के सिपाहियों को लड़वा देने की साजिश के डीएनएधारी रहा है भारतीय वामपंथ। और कामरेड, ये तुम्हीं हो जो उस समय सैनिकों के लिए रक्तदान शिविरों के ख़िलाफ़ थे!

1960-61 में संसद की बहस के दौरान रक्षा मंत्री वीके कृष्णन मेनन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !

प्रस्ताव था : जब पाकिस्तान हमसे 1948 मे समझोता कर लिया है कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! उसके सिवाय उस क्षेत्र में, और बाकी किसी पास-पड़ोस मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे पाक बार्डर पर सेना रखने की क्या जरूरत है ! सेना हटा या बहुत कम कर देनी चाहिए ! और देश का रक्षा बजट कम कर देना चाहिए। रक्षा कारखानों (डिफेंस फैक्ट्रीज) में चीनी-मिट्टी के कप-प्लेट बनाने की योजना बना रहे थे हमारे पहले रक्षा मंत्री।

इसलिए इस दफा हम गर्व से कह सकते हैं कि वर्तमान भारत-चीन सीमा विवाद भारत ने शुरू किया है और यह एक दीर्घकालिक अवधारणा है भाजपा शासित एनडीए की पहली दक्षिणपंथी सत्ता के समय की जिस पर यह देश 90 के दशक से कायम रहा और आज भारत-चीन सीमा  पर पूर्वोत्तर से शुरू होकर उत्तर की तरफ उत्तरोत्तर है। 

इस बीच में देश ने डोकलाम देखा। लिपुलेक देखा। पेंगोंग देखा इसी सड़क के शुरू होने क्व वक्त... जहां भारत ही अग्रिम मोर्चे पर भिड़ा हुआ सामने आया अब ये गलवान है जहां गोली चल गई। चीन कभी भूटान की आड़ में अपनी बदनीयती पर आमादा, फिर दुरुस्त भी हुआ। चीन ने इसी स्ट्रेटजिक सड़क निर्माण में नेपाल को भी झोंका और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार कम्युनिस्ट चीन के प्रति अपने वैचारिक कर्ज उतारने को बाध्य है जिस पर कोई आश्चर्य नहीं। भारत नेपाल से भी निपट रहा है। सड़क आज भी बन रही और बनती रहेगी। भारत अब चीन बॉर्डर पर पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर तक लगातार रणनीतिक रूप से बढ़त हासिल करता जा रहा है और दिल्ली अपने पूरे देश के नजदीक होती जा रही है। 

"दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन के साथ ही दुनिया की सबसे ऊंचाई दौलत बेग ओल्डी पर एयरफोर्स तैनाती की नजदीकी है भारत की अपनी दिल्ली से"

इसलिए दिल्ली दूर के डीएनए-धारियों को अपने कैलेंडर और अंक गणित दोनो दुरुस्त करने की जरूरत है।

(#अवनीश पी. एन. शर्मा)

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