काशी का क्योटो होना

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के काम के तहत अधिग्रहित भवनों के तोड़े जाने के दौरान हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आ रही हैं। जिसमें चंद्रगुप्त काल से लेकर लगायत मंदिरों सहित हजारों साल से दुनिया के लिये गुम हो चुके प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आ रहें हैं।

दुःख और शर्म की बात यह है कि इन प्राचीन मंदिरों का गुम होना किसी मुगल या विदेशी आक्रांताओं की वजह से नहीं हुआ। ऐसा प्राचीन काशीविश्वनाथ मंदिर परिसर के इर्दगिर्द खुद को पंडे-पुजारी-महंथ और पुरातन स्थानीय निवासी कहने वालों के द्वारा प्राचीन मंदिरों को छुपाते हुए उसके आवरण के रूप में, भवन-दूकानें-धर्मशालायें बना कर अवैध सांस्कृतिक-पौराणिक-धार्मिक-ऐतिहासिक कब्जेधारियों और अतिक्रमणकारियों के स्वार्थी नीयत के चलते हुआ है।

दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत नगरी काशी के गर्भ में कई इतिहास दफ़्न हैं। ऐसे ही कई इतिहास विश्वनाथ कारीडोर योजना में निकलकर के अब सामने आ रहे हैं। बहुत से ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर इस कॉरिडोर के बनने के बाद सामने आये हैं, जिन्‍हें हजारों साल से भुलाया जा चुका है। श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में कुछ मंदिर उतने ही पुराने मिल रहे हैं जितनी पुरानी काशी नगरी के होने का अनुमान इतिहासकार लगाते हैं।

मणिकर्णिका घाट के किनारे दक्षिण भारतीय स्टाइल मे रथ पर बना एक अद्भुत भगवान शिव का मंदिर जिसमें समुंद्र मंथन से लेकर कई पौराणिक गाथाएं उकेरी गई है, समाने आया है। इसी मंदिर के सामने की दिवार से ढका भगवान शिव का भी एक बड़ा ही प्राचीन मंदिर मिला है।

यही नहीं हूबहू श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की प्रतिमूर्ति वाला भी एक अन्‍य मंदिर मिला है। इसमें कुछ मंदिर तो चंद्रगुप्त काल और उससे भी पुराने माने जा रहें हैं। प्राचीन मंदिर इतिहास के पन्नों में अबतक दबे हुए थे, वे अब सामने आ रहें हैं। अब इसका रख रखाव बेहतर ढंग से प्रशासन करेगा। साथ ही काशी आने वाले श्रद्धालुओं को भी इन मंदिरों के बारे में विस्‍तार से जानने को मिलेगा।

ऐसा नहीं है कि काशी में श्री काशी विश्वनाथ के इर्द-गिर्द रातों रात मंदिरों का संकुल निकलकर सामने आ गया है, बल्कि इसके लिए स्थानीय प्रशासन को महिनों की मशक्कत करनी पड़ी है। ये काम अभी भी श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के तहत जारी है। विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण के तहत अब तक निर्धारित कुल 296 भवनों में से 175 को खरीद लिया गया है और विस्तारीकरण के तहत हो रहे ध्वस्तीकरण में फिलहाल 41 छोटे बड़े अति प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आए हैं।

सभी को याद करना चाहिए कि इस परियोजना के शुरू होने के प्रस्ताव के समय कुछ तथाकथित लोगों, संगठनों ने खुद को काशी का स्थानीय और संस्कृति संरक्षण का स्वयंभू ठीकेदार घोषित कर इसका विरोध करने का काम किया था। सोशल मीडिया से लेकर स्थापित मीडिया तक परियोजना को लेकर नकारात्मक बातें फैलाने के तमाशे भी हुए। बाकी बचे भवनों को लेकर ये तमाशे अभी भी चल रहे हैं अवैध कब्जेदारों और अतिक्रमण करने वालों के द्वारा।

चंद्रगुप्त काल से लेकर काशी के लिखित साढे 3 हजार साल पुराने मंदिर भी यहां मिल रहें हैं। दरअसल इन मंदिरों को भवन स्वामियों द्वारा चाहरदिवारी के अंदर निजी वजहों से छिपाकर रखा गया था। जिस वजह से ये मंदिर अबतक देश-दुनिया की नजरों से दूर थे। लेकिन, जैसे जैसे अति प्राचीन मंदिर मिलते जा रहें हैं वैसे वैसे प्रशासन फिलहाल वहां ध्वस्तीकरण का काम रोककर उनकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराकर उसकों संरक्षित करने के काम में लग जा रहा है। जिसके तहत बकायदा विशेषज्ञों की टीम भी लगाई जा रही है।

भारतीय सनातन वास्तु के इस प्रगटीकरण के सामने घरों, दूकानों, धर्मशालाओं के भीतर इन प्राचीन मंदिरों को छुपाये अवैध कब्जेदार और उनके गिरोह आज समाज-देश के सामने नंगे हैं।

मंदिरों की प्राचीनता को मापने के लिए शासन अब कार्बन डेटिंग भी कराने जा रहा है। विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के दौरान लिये गये मकानों को तोड़ने पर निकले मंदिरों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी, ताकि उनकी स्‍थापना का वास्‍तविक काल पता चल सके। जब ये सारे मंदिर सामने आ जायेगे तो खुद ब खुद एक प्राचीन मंदिरों का भव्य परिसर निकलकर सामने आयेगा। जो अपने आप में अद्भुत होगा।

विशेषज्ञों की दर्जन भर संख्या की टीम फिलहाल मंदिरों की प्राचीनता को जानने के लिए लगी हुई है। जो ड्रोन कैमरे और गूगल इमेज के जरिये शुरुआती काम हो रहे हैं। अति प्राचीन मंदिरों का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। यह टीम मंदिर प्रशासन की टीम के साथ मिल कर अभी डेटा बेस इकट्ठा कर रही है बिल्डिंग और पूरे परिसर का, इस कार्य के बाद दूसरे चरण का कार्य शुरू होगा।

प्रधानमंत्री की पहल पर जो विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की शुरुआत हुई है। इसके लिए मकानों को तोड़ने के बाद 4 हज़ार से 5 हज़ार वर्ष पुराने मंदिर घरों के अंदर से छुपे हुए मिल रहे हैं। आज जिस तरह ये तमाम मंदिर देखने को मिल रहे हैं, यह देश के लिए शुभ संकेत हैं। ऐसे मंदिरों की पूजा आम जनमानस कर पायेगा और उसके महत्त्व को जान पायेगा साथ ही आने वाली पीढ़ी भी काशी की प्राचीनता को देख पायेगी।

जाहिर तौर पर जब श्रीविश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर मूर्त रूप ले लेगा उसमें मिले अति प्राचीन मंदिरों का विशाल परिसर अपनी अलग ही छटा बिखेरेगा। वे मंदिर जो कभी इतिहास के पन्नों में दफन हो गए थे और अभी भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहें हैं, वे जब अपनी प्राचीनता और पौराणिकता के साथ सामने आयेगे तब निश्चित रूप से इसे किसी बड़ी खोज से कम नही आका जायेगा।

इस अकल्पनीय महा-योजना की कल्पना के लिए प्रधानमंत्री और काशी के स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद देने के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्य सरकार के पर्यटन, धर्मार्थकार्य, संस्कृति विभागों का आभार बनता है। स्थानीय प्रशासन, खुदाई और ध्वस्तीकरण में लगे विशेषज्ञों को भी साधुवाद देना बनता है।

काशी का क्योटो बनना कैसे होता है… यह क्योटो में बसते, फलते-फूलते और संरक्षित… जापानी पुरातन संस्कृति के सच को जानने के बाद ही समझा जा सकता है। काशी का सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक पुनर्स्थापन और उसका संरक्षण ही बनारस से क्योटो तक की यात्रा का पूर्णविराम है।

(अवनीश पी. एन. शर्मा)

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