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गरीबों के लिए धर्म जरूरी है : बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर

गरीबों के लिए धर्म एक जरूरत है। संकटग्रस्त लोगों के लिए धर्म एक अति आवश्यक तत्व है। गरीब लोग सकारात्मक आशाओं के साथ जिंदा रहते हैं। अंग्रेजी के इस शब्द 'होप' का अर्थ होता है, आशा.. जीवन का स्रोत। अगर यह स्रोत नष्ट हो गया तो फिर जीवन कैसे चलेगा ? धर्म व्यक्ति को आशावादी बनाता है। और जो पीड़ा में हैं, गरीबी और अभाव में हैं उन्हें यह संदेश देता है कि घबराओ मत ; जीवन आशाओं को हासिल करने वाला होगा, जरूर होगा, उसे होना ही होगा। इस तरह गरीब और व्यथित लोग धर्म को अपने सकारात्मक आशावादी आधार के रूप में आत्मसात करके, पकड़ के चलने वाले लोग हैं। (14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने के अगले दिन 15 अक्टूबर को दिए गए 2 घन्टे के भाषण का अंश) बाबा साहेब का यह पूरा भाषण मराठी में प्रबुद्ध भारत में 27 अक्टूबर को "नागपुर क्यों चुना गया" शीर्षक से छपा। भाषण देते समय बाबा साहेब बीमार थे और 6 दिसंबर 1956 को, लगभग दो महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गयी। बाबा साहेब के भाषण के इस हिस्से से एक बात तो बखूबी साफ़ है कि वे भारतीय संदर्भ में धर्म को व्यक्ति के, समाज के, और

कार्ल मार्क्स का संप्रदाय और हम : बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर।

मानव सभ्यता के विकास के लिए धर्म बहुत ही जरूरी है। मैं जानता हूँ कार्ल मार्क्स के लेखन से एक संप्रदाय (Sect) का जन्म हुआ है। उनके पंथ (Creed) के मुताबिक धर्म कुछ भी नहीं और उनके लिए धर्म कोई मायने नही रखता। वे सुबह ब्रेड, क्रीम, बटर और मुर्गे की टाँग आदि ; का नाश्ता करते हैं ; पूरी रात निश्चिंत होकर चैन भरी नींद लेते हैं ; फिल्में देखते हैं ; यही सब हकीकत है उनके यहां की। यही उनका यानी मार्क्सवादी दर्शन है। मैं इससे सहमत नही, साथ ही इस विचार का नही हूँ। मेरे पिता गरीब थे और इस वजह से मुझे कोई ऐशो आराम नही मिला इन लोगों की तरह। किसी ने भी वैसा कड़ा और कठिन जीवन नही जिया है जैसा मैंने। किसी इंसान की जिंदगी बिना सुख और आराम के कैसी होती है यह मैं बखूबी जानता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि आर्थिक उत्थान के लिए आंदोलन जरूरी है। मैं इसके खिलाफ नही। समाज को आर्थिक प्रगति करनी ही होगी।  (14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने के अगले दिन 15 अक्टूबर को दिए गए 2 घन्टे के भाषण का अंश) बाबा साहेब का यह पूरा भाषण मराठी में प्रबुद्ध भारत में 27 अक्टूबर को "नागपु