कार्ल मार्क्स का संप्रदाय और हम : बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर।

मानव सभ्यता के विकास के लिए धर्म बहुत ही जरूरी है। मैं जानता हूँ कार्ल मार्क्स के लेखन से एक संप्रदाय (Sect) का जन्म हुआ है। उनके पंथ (Creed) के मुताबिक धर्म कुछ भी नहीं और उनके लिए धर्म कोई मायने नही रखता।

वे सुबह ब्रेड, क्रीम, बटर और मुर्गे की टाँग आदि ; का नाश्ता करते हैं ; पूरी रात निश्चिंत होकर चैन भरी नींद लेते हैं ; फिल्में देखते हैं ; यही सब हकीकत है उनके यहां की। यही उनका यानी मार्क्सवादी दर्शन है।

मैं इससे सहमत नही, साथ ही इस विचार का नही हूँ। मेरे पिता गरीब थे और इस वजह से मुझे कोई ऐशो आराम नही मिला इन लोगों की तरह। किसी ने भी वैसा कड़ा और कठिन जीवन नही जिया है जैसा मैंने। किसी इंसान की जिंदगी बिना सुख और आराम के कैसी होती है यह मैं बखूबी जानता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि आर्थिक उत्थान के लिए आंदोलन जरूरी है। मैं इसके खिलाफ नही। समाज को आर्थिक प्रगति करनी ही होगी। 

(14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने के अगले दिन 15 अक्टूबर को दिए गए 2 घन्टे के भाषण का अंश)

बाबा साहेब का यह पूरा भाषण मराठी में प्रबुद्ध भारत में 27 अक्टूबर को "नागपुर क्यों चुना गया" शीर्षक से छपा। भाषण देते समय बाबा साहेब बीमार थे और 6 दिसंबर 1956 को, लगभग दो महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गयी। 

यहां ध्यान देने वाली बात है... बाबा साहेब के द्वारा वामपंथ के संदर्भ में किये गए विशुद्ध धार्मिक "संप्रदाय" "पंथ" जैसे शब्दों का उपयोग। Creed जैसा शब्द अपने पर्यायवाची अर्थों में.. इस दर्शन को एक ख़ास धर्म के नजदीक खड़ा किये देता है। साथ ही बाबा साहेब का... इनकी पाखंड से भरी जीवनशैली और वास्तविकता से दूर खयाली चिंतन की सही पहचान... जो इस भौतिकवादी दर्शन के मूल में है, हमेशा सामयिक है... कल,आज और शायद कल भी। 

सच, तथ्यों और इतिहास के खिलाफ गिरोहबाजी देखिये : दुःख और आक्रोश के चलते धर्म त्याग के समय बाबा साहेब के कहे हिन्दू धर्म विरोधी बातें तो ये आपको बताते रहे दशकों से लगायत आज रोहित वेमुला के परिवार को इस्तेमाल करते.. वैचारिक, राजनैतिक पाखंड के जलसे तक। आक्रोश और रूठ के त्यागने के मौके पर इसकी उम्मीद भी होनी ही चाहिए जो कुछ भी हिन्दू धर्म आलोचना में उन्होंने कहा। लेकिन धूर्त्त उकसावे के चलते अपनी जान गंवाने वाले रोहित की अंतिम चिट्ठी में... उसके वामपंथी छात्र संगठन 'स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया' (SFI) के स्वार्थी होने और इस्तेमाल करने की 6 लाइनें लिखने और फिर काट देने के क्रूर सच के बीच... रोहित से लगायत बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर तक इस वैचारिक जमात के बखूबी पहचाने सच को आपसे दूर रखा। 

हकीकतों के कितने बड़े बाजीगर, ठग और अपराधी हैं ये जिन्हें संविधान निर्माता ने कितने सलीके से पहचाना और बताया : आप भी जानिये !

#क्रमशः

Comments

  1. Correct , we need to expose this Bloody Kaampanth

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

चंबल वाले डाकू छविराम से मथुरा वाले रामबृक्ष यादव तक की समाजवादी यात्रा और नेता जी की टूटी उंगली :

स्वतंत्रता के बाद कला संस्कृति में वैचारिक पक्षपात एवं मोदी सरकार में पारदर्शिता :

महज एक कैम्पस भर बिसात वाले वामपंथ ने आखिर जेनयू में हराया किसको ?