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Showing posts from 2017

देश का समभाव :

1887 में ही अलीगढ़ आंदोलन के दौरान सर सैयद अहमद खां ने अपने भाषण में कह दिया "हिन्दू और मुस्लिम दो अलग-अलग कौमें हैं और साथ-साथ नहीं रह सकतीं"। आगे चल कर मो0 अली जिन्ना ने कहा था हिन्दू और मुसलमान दो अलग "राष्ट्र" हैं जो कभी एक साथ नहीं रह सकते इसलिए मुसलमानों को अलग होमलैंड चाहिए। स्पष्ट है कि विभाजन मुसलमानों की मांग पर हुआ था और बहुसंख्यक हिन्दुओं ने इसका विरोध किया था। क्या आप और हम आज भी यह महसूस करते हैं कि जिन्ना और खां साहेब की बातें सही थीं ? पहली नजर में बहुत बड़ा आरोप दिखाई देता है यह... इसलिए बात कायदे से समझनी पड़ेगी और आधार देना होगा।  चलिए हम ये मान लेते हैं या हमें मान लेना चाहिए (मैं निजी तौर पे मानता भी हूँ) कि भारत के सन्दर्भ में जिन्ना और सर सैयद अहमद की बातें फ्रॉड थीं, बकवास थीं और वे दोनों महा-पापी थे जो उन्होंने ऐसी गंदी बात सोची.. कही। इसका सबूत है कि हमने नेहरू जी के छाया तले (जैसा की स्थापित है) भारत को सेक्युलर, साँझी विरासत वाला ऐसा देश बनाया जिसमे हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई एंड सो ऑन.. सब भाई-भाई।  'हमने देश के नागरिकों के न

'फलाने' के दक्खिन :

अस्सी से धूमिल क्या गया, जैसे आँगन से बेटी विदा हो गई। घर सूना और उदास। इधर सुनते हैं कि कोई बुढ़ऊ-बुढ़ऊ से हैं कासीनाथ सिंह-इनभर्सीटी के मास्टर जो कहानियाँ-फहानियाँ लिखते हैं और अपने दो-चार बकलोल दोस्तों के साथ 'मारवाड़ी सेवा संघ' के चौतरे पर 'राजेश ब्रदर्स' में बैठे रहते हैं ! अकसर शाम को ! ...'ए भाई ! ऊ तुमको किधर से लेखक-कवि बुझाता है जी ? बकरा जइसा दाढ़ी-दाढ़ा बढ़ाने से कोई लेखक कवि न थोड़े नु बनता है ? देखा नहीं था दिनकरवा को ? अरे, उहै रामधारी सिंघवा ? जब चदरा-ओदरा कन्हियाँ पर तान के खड़ा हो जाता था—छह फुट ज्वान; तब भह्-भह् बरता रहता था। आउर ई भोंसड़ी के अखबार पर लाई-दाना फइलाय के, एक पुड़िया नून और एक पाव मिरचा बटोर के भकोसता रहता है ! कवि-लेखक अइसै होता है का ? सच्चा कहें तो नमवर-धूमिल के बाद अस्सी का साहित्य-फाहित्य गया एल.के.डी. (लौंडा के दक्खिन) ! बेटा कुंदन ! ई का है बे ? बबवा ! कीप साइलेंट.. हैव सम्मान एंड बी हैप्पी विद साहित्य की 'कठकरेजी' शैली एंड बाई हैप्पी बिकॉज : जब रंगीन कलमों से निकली गालियों को साहित्य सृजन में नई शैली का नाम

स्वतंत्रता के बाद कला संस्कृति में वैचारिक पक्षपात एवं मोदी सरकार में पारदर्शिता :

समृद्ध संस्कृति, कला और विरासत की भूमि है भारत जहाँ लोगों में इंसानियत, उदारता, एकता, धर्मनिर्पेक्षता, मजबूत सामाजिक संबंध और दूसरे अच्छे गुण हैं। दूसरे धर्मों के लोगों द्वारा ढ़ेर सारी क्रोधी क्रियाओं के बावजूद भी भारतीय हमेशा अपने दयालु और सौम्य व्यवहार के लिये जाने जाते हैं। अपने सिद्धांतों और विचारों में बिना किसी बदलाव के अपनी सेवा-भाव और शांत स्वाभाव के लिये भारतीयों की हमेशा तारीफ होती है। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं पर बिन्दुवार कुछ बातें देखी जा सकती हैं। प्राचीनता - भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाये गये शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा कुछ अन्य नृवंशीय एवं पुरातत्त्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत भूमि आदि मानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के विवरणों से भी प्रमाणित होता है कि आज से लगभग पाँच हज़ार वर्ष पहले उत्तरी भारत के बहुत बड़े भाग में एक उच्च कोटि की संस्कृति का विकास हो चुका था। इसी प्रकार वेदों में परिलक्षित भारतीय संस्कृति न केवल प्राचीनता का प्रमाण है

आर्टिकल 35A और संविधान की किताब :

जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र आजकल जम्मू-कश्मीर पर विमर्शों के दौरान हो रहा हैं, वह संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। जिस आर्टिकल की वजह से जम्मू-कश्मीर में लोग भारत का प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं, लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते : वह भारतीय संविधान का हिस्सा नहीं ? जिस 35A की वजह से लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं : वह 35A भारत के संविधान में कैसे नहीं ? हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है।   इसका क्या मतलब ! क्या आर्टिकल 35A (कैपिटल) का वजूद नहीं ? क्या यह कोई संवैधानिक फरेब है ? भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है। लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ता

उनके झूठ तैयार हैं, आप कितने तैयार हैं राष्ट्रवादियों !!

आपके राजनैतिक विरोधी अब यह मानने लगे हैं कि लगातार प्रधानमंत्री जी के नाम की आलोचना कर के उनसे गलती हुई है, वे नुकसान में रहे हैं... राष्ट्रवादी मित्रों। और अब विपक्ष ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए... सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों पर बात करने की तैयारी की है। जिसके नतीजे आपको जल्दी ही.. स्थापित मीडिया से लगायत सोशल मीडिया, सदनों, कार्यक्रमों, विभिन्न फोरमों, राजनीतिक पार्टियों के आयोजनों, दार्शनिक-वैचारिक-राजनैतिक गिरोहों आदि के मंचों से दिखेंगे। मैं विपक्ष की इस नीति का स्वागत करूंगा, लेकिन साथ ही आपकी जानकारी में लाना जरूरी समझूंगा कि ऐसा करते हुए ईमानदारी नहीं बरती जाएगी। गलत तथ्य रखे जाएंगे। झूठे आंकड़े प्रचारित किये जायेंगे। अफवाहें फैलाई जाएंगी। कुतर्क गढ़े जाएंगे.... आपके परधान मोदी जी का नाम लिए बिना। आपकी क्या तैयारी है मेरे सम्मानित राष्ट्रवादियों ? 'भाव' पर 'भाव' खाने से क्या सब हो जाने वाला है ! क्या आप भी खुद को शासन की नीतियों, कार्यक्रमों पर तथ्यों, आंकड़ों... के साथ तैयार रखने के बारे में सोचेंगे ? मुझे इस रणनीति के मुताबिक सामाजिक-राजनैतिक

आरक्षण पर आरक्षित विमर्श :

अवसर की समानता के लिए संवैधनिक व्यवस्था जातिगत आरक्षण एक बार फिर बहस के केंद्र में है, जबकि इसका कोई औचित्य नहीं बनता। औचित्य इस लिए नहीं, क्योंकि सरकार की तरफ से ऐसी कोई पहल अभी तक नहीं है। और अगर है भी... तो विरोध अथवा चिंता, शक, भ्रम का औचित्य इसलिए नहीं बनता क्योंकि दो बातें बिल्कुल साफ और सीधी हैं। - भाजपा (एनडीए) के लोकसभा 2014 घोषणापत्र में जातिगत आरक्षण की समाप्ति तो क्या, इसकी समीक्षा की भी कोई बात नहीं कही गयी है। इसलिए आरक्षण पर पार्टी के स्टैंड में कोई बदलाव आपेक्षित ही नहीं है। - वर्तमान केंद्र सरकार आरक्षण का दायरा प्रोन्नति (प्रमोशन) तक ले जाने की प्रक्रिया में कोई नई पहल नहीं करने जा रही : अगर वह इसे करने पर सहमति दिखा रही है तो भी। सरकार की मंशा क्या है ? सरकार चाहती है कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को "तय सीमा" तक आरक्षण का फायदा मिलना चाहिए। क्या है यह "तय सीमा" ? जातिगत आरक्षण में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 15% और अनुसूचित जाति (एसटी) के लिए 7.5% की सीमा तय है। आरक्षण की इस संवैधानिक व्यवस्था का अंतिम छोर तक