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Showing posts from June, 2020

पेकिंग दूर दिल्ली नजदीक है :

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"दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक है" "चीन से मुक्तिवाहिनी आ रही है हमें आज़ाद कराने" जैसे नारों के गर्भ ठहरने की कल्पना में भूल कर भी मत डूबने की कोशिश करना भारतीय वामपंथियों और पाखंडी शुद्धतावादियों जब तुमने भारत-चीन युद्ध साल 1962 के दौरान कलकत्ता और बंगाल भर में 'दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक' बोल के कहा 'चीन से मुक्ति वाहिनी आ रही है'! क्योंकि अभी हाल दिल्ली नजदीक है आंकड़ों में।  तीन भारतीय शहीदों के सामने 5 चीनी मरे हैं, घायलों की संख्या ग्यारह से आगे समाचारों में पढ़ते रहने की जरूरत है। देश की विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकारों के राजनैतिक विरोध, नारों आदि पर कभी गंभीरता की जरूरत नहीं ये लोकतंत्र के गहने हैं.. श्रृंगार हैं। लेकिन जो मानसिकताएं देश को.. उसके किसी भूभाग को उससे दूर रखने की कल्पना भी करती हों उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए और याद दिलाना चाहिए कि दिल्ली इस बार और भी बहुत तरीकों से नजदीक है : - इस दफा न भारतीय सेना ने पीटी शू पहने हैं न ही देश के रक्षा कारखाने चीनी मिट्टी के कप-प्लेट, खिलौने बना रहे बल्कि.. पूर्वोत्तर अरुणाचल से लेकर उत्तर तक एलएसी प

काशी का क्योटो होना

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श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के काम के तहत अधिग्रहित भवनों के तोड़े जाने के दौरान हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आ रही हैं। जिसमें चंद्रगुप्त काल से लेकर लगायत मंदिरों सहित हजारों साल से दुनिया के लिये गुम हो चुके प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आ रहें हैं। दुःख और शर्म की बात यह है कि इन प्राचीन मंदिरों का गुम होना किसी मुगल या विदेशी आक्रांताओं की वजह से नहीं हुआ। ऐसा प्राचीन काशीविश्वनाथ मंदिर परिसर के इर्दगिर्द खुद को पंडे-पुजारी-महंथ और पुरातन स्थानीय निवासी कहने वालों के द्वारा प्राचीन मंदिरों को छुपाते हुए उसके आवरण के रूप में, भवन-दूकानें-धर्मशालायें बना कर अवैध सांस्कृतिक-पौराणिक-धार्मिक-ऐतिहासिक कब्जेधारियों और अतिक्रमणकारियों के स्वार्थी नीयत के चलते हुआ है। दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत नगरी काशी के गर्भ में कई इतिहास दफ़्न हैं। ऐसे ही कई इतिहास विश्वनाथ कारीडोर योजना में निकलकर के अब सामने आ रहे हैं। बहुत से ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर इस कॉरिडोर के बनने के बाद सामने आये हैं, जिन्‍हें हजारों साल से भुलाया जा चुका है। श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में कुछ मंदिर उतने ही पुर

हाथी मेरे साथी पर पशुवत केरल :

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ईश्वर की धरती जो अब भारत में एकमात्र कम्युनिस्ट सत्ता की धरती भी रह गयी केरल में राजनीतिक.. खासकर चुनावी हिंसा, हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है। साल 2012 में सीपीएम के नेता रहे टी.पी. चंद्रसेखरन की काट-काट कर की गई बर्बर हत्या इसी  सिलसिले की कड़ी कही जायेगी। साल 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले और वाम एलडीएफ की जीत के बाद भी हिंसा-हत्या का सिलसिला कन्नूर तक चल ही रहा था। इन तमाम सालों में राजनीतिक हिंसा, हत्याओं के साथ विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ धर्मिक हिंसा, हत्याओं के भी सिलसिले आम हैं। इस बीच बताते चलें... चौंकिएगा नहीं, राजनैतिक विरोध में टी.पी. चंद्रसेखरन की साल 2012 में क्रूर और मध्ययुगीन शैली ये यह हत्या, कम्युनिस्ट पार्टी... सीपीएम की ही तरफ़ से की गई, वजह ये कि चंद्रशेखरन ने पार्टी की नीतियों की आलोचना कर एक दूसरी पार्टी, 'रेवेल्यूश्नरी मार्कसिस्ट पार्टी' बना ली थी। "सीपीएम लोगों की ज़िंदगी में घुस गया है, यहां तक की गांववालों को अपने घर की शादी में कांग्रेस-समर्थक दोस्त तक को बुलाने की आज़ादी नहीं है, अब ऐसे में लोगों और असलहे के बल के साथ आरएसएस अपना प्रचार करेग