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Showing posts from December, 2016

पूँजीवाद और समाजवाद का मिक्स नॉनवेज पुलाव : वामपंथ

मार्क्सवाद दरअसल जर्मन दार्शनिक हीगल के द्वंद्ववाद, इंग्लैंड के पूंजीवाद और फ्रांसीसी समाजवाद का "मिला-जुला नॉनवेज पुलाव" है। इसमें यूरोपीय सामंती भावना, सबसे उच्च होने का दंभ भी रहा है और भारत, भारतीयों के प्रति हीनभाव भी। यही वजह है कि वामपंथ भारत के स्वाभाविक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विरोधी है। ऐसा उसके मूल आयातित चरित्र के कारण जन्मना है। तो वहीं कांग्रेस... 1857 के गदर से सहमी कंपनी सरकार के ही अधिकारी ए ओ ह्यूम के हाथों अस्तित्व में आने और हितसाधन के बाद आगे.... तिलक, गांधी, विपिन चंद्र पाल, सरदार पटेल का नेतृत्व पाकर भी राष्ट्रवादी नहीं हो सकी। अपनी नियति के चलते वह आजादी के आंदोलन से राजनीतिक पार्टी और आगे चल कर एक खानदान की प्रॉपर्टी बन गई। कांग्रेस और वामपंथ चरित्र में एक हैं। भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म रूसी क्रांति की प्रेरणा से नवंबर 1925 में कांग्रेस अधिवेशन की छाया में हुआ था। भारत का कम्युनिस्ट आंदोलन कांग्रेस का बायां हाथ पकड़कर आगे बढ़ा। कांग्रेस ने उसे फलने-फूलने के अवसर दिए। भारतीय वामपंथ को सत्ता के छायावाद में पाले जाने की परंपरा और उनके स्

महज एक कैम्पस भर बिसात वाले वामपंथ ने आखिर जेनयू में हराया किसको ?

बधाई हो कामरेड ! जेनयू में तेज चलती खिलाफत की आंधी में.... पेंग्विनों की तरह एक दूसरे के संग लिपट-चिपट के अस्तित्व रक्षा की जुगत करते हुए....सारे वाम फेडरेशनों ने गिरोह की शक्ल में एक होकर... चुनावों में आखिर हराया किसे है ? राष्ट्रवाद को या वाम द्वारा सर्वहारा समाज की पहचान दिए हुए दलित फेडरेशन.....बापसा (बिरसा-फूले-अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) को ? सीटवार वोटों की संख्या देखिये और हर जगह बापसा को मिले मत देखिये। जेनयू में वाम ने दिखाया कि वह अब दलितों के मुक़ाबिल खड़ा है मैदान में। तो दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने... वामपंथ की दूकान से अलग हो... खुद के स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण किया। रही बात एवीबीपी की, तो यह संगठन जेनयू छात्र राजनीति में अपनी सतत जगह बना रहा है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। चिंतन करिये इस ऐतिहासिक दुर्घटना पर : यह वाम दर्शन की जीत है या हार ? पढ़िये बापसा का जेनयू चुनावों में अध्यक्ष पद प्रत्याशी राहुल क्या कहता रहा अपनी कैम्पेनिंग में : आरक्षण से लेकर, हॉस्टल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, गैर-अंग्रेजी माध्यम से आए छात्रों के साथ भेदभाव, वाइवा में वंचित समुदाय क

तारिक फ़तेह ने जब बयान की सच्चाई तो झुंझलाए मुन्नवर राना ने यूँ खीझ मिटाई :

कल तारिक फतेह साहेब को एक टीवी शो की अदालत में बोलते हुए सुना और उस पर मुन्नवर राना साहेब का बतौर जज सुनाया फैसला भी। ठेठ पंजाबी मुस्लिम तारिक फतेह, जिन्हें मैं कुछ सालों से फॉलो करता और पढ़ता रहा हूँ.... जब यह खरा और नंगा सच सामने रख रहे हों कि : साहेब ! आपने पाकिस्तान बना के अलग किसे किया ? उन पंजाबियों, सिंधियों, बलूचियों और बंगालियों को..... जिनका इस्लाम एक मजहब के सिवाय..... उर्दू जुबां और संस्कृति से कोई वास्ता ही न रहा कभी ? "आँगन की चारपाई पर वो सूखती मिर्च छोड़ आए हैं".... जैसी भावपूर्ण लाइनें रचने वाले मुन्नवर साहेब.... भला तारिक साहेब के लिए और क्या कहते.... अगर लॉफ्टर के कलाकार न कहते तो ! ऐसा कहने के पीछे उनका जाती मामला है जिसका अंदाजा शायद नीचे आपको हो, जिसे मुझ जैसा अदना फेसबुकिया भी सालों से यहीं लिखता रहा है। बटवारे में रेडक्लिफ साहेब ने नक्शे में जो लाइनें खींच के हिस्सा किया उस हिस्से में दरअसल.... आबादी के लिहाज से बहुसंख्यक लेकिन सांस्कृतिक तौर पर एकदम अलहदा... वे मुसलमान आये जिन्होंने कभी जिन्ना के मुस्लिम लीग को आजादी के पहले के आम चुनावों में...