महज एक कैम्पस भर बिसात वाले वामपंथ ने आखिर जेनयू में हराया किसको ?
बधाई हो कामरेड !
जेनयू में तेज चलती खिलाफत की आंधी में.... पेंग्विनों की तरह एक दूसरे के संग लिपट-चिपट के अस्तित्व रक्षा की जुगत करते हुए....सारे वाम फेडरेशनों ने गिरोह की शक्ल में एक होकर... चुनावों में आखिर हराया किसे है ?
राष्ट्रवाद को या वाम द्वारा सर्वहारा समाज की पहचान दिए हुए दलित फेडरेशन.....बापसा (बिरसा-फूले-अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) को ?
सीटवार वोटों की संख्या देखिये और हर जगह बापसा को मिले मत देखिये। जेनयू में वाम ने दिखाया कि वह अब दलितों के मुक़ाबिल खड़ा है मैदान में। तो दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने... वामपंथ की दूकान से अलग हो... खुद के स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण किया। रही बात एवीबीपी की, तो यह संगठन जेनयू छात्र राजनीति में अपनी सतत जगह बना रहा है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
चिंतन करिये इस ऐतिहासिक दुर्घटना पर : यह वाम दर्शन की जीत है या हार ?
पढ़िये बापसा का जेनयू चुनावों में अध्यक्ष पद प्रत्याशी राहुल क्या कहता रहा अपनी कैम्पेनिंग में :
आरक्षण से लेकर, हॉस्टल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, गैर-अंग्रेजी माध्यम से आए छात्रों के साथ भेदभाव, वाइवा में वंचित समुदाय के साथ भेदभाव पर लेफ्ट ने सिर्फ जुमले-बाजी की है। नारी-स्वतंत्रता और प्रतिनिधित्व के सवाल पर लेफ्ट एक्टिविस्ट कविता कृष्णन जी बताएं....ऐसी कौन सी बात है की उनकी पार्टी में झंडे ढ़ोने वाली, रणवीर सेना के हांथों शिकार होने वाली किसी मुसहर लड़की को वह स्थान नहीं मिला, जहाँ आज उनकी तथाकथित नेता है। ऐसी वो कौन सी बात है जो कविता कृष्णन बोल सकती है तथा एक मुसहर लड़की नहीं बोल सकती ? बलात्कार की शिकार पर क्यों लेफ्ट मौन और बलात्कारी पर नर्म दिखता है ?
रोहित वेमुला का इस्तेमाल कर लेफ्ट ने उसकी आत्महत्या की दुखद स्थितियों का निर्माण किया। उसकी शहादत के बाद आंदोलन को दिल्ली लाकर कश्मीर की आजादी जैसे वामपंथी और मुस्लिम गठजोड़ के साथ इस्तेमाल किया। आज वेमुला से उठा आंदोलन लेफ्ट के हाथों मार दिया गया। दलितों को ठगा है लेफ्ट ने जिसकी वजह से अब दलित, आदिवासी अपने खुद के बैनर पर खड़ा है।
जेनयू ने यह दिखाया कि भारतीय वामपंथी छात्र राजनीति से सर्वहारा (दलित, वंचित, आदिवासी) अब अलग है और लेफ्ट के पास जो बचा रह गया.... वो महज बुर्जुआ तपका है जिसकी उपलब्धि है.... नए अध्यक्ष के तौर पर... मोहित पांडे सहित चार प्रमुख पदों में से तीन पर... विशुद्ध मनुवादी और ब्राम्हणवादी सत्ता की स्थापना।
वामपंथ के शेष रह गए एक कैंपस भर की बिसात को भी समाप्त करने का काम अब दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने बापसा के बैनर तले लिया है : जो देश और समाज के व्यापक हित में है।
भारत की बर्बादी, भारत से जंग, देश के सौ टुकड़े के साथ लाल सलाम-इंशाअल्लाह के मजहबी गिरोहबंदी के खिलाफ.... जेनयू से शुरू इस नयी सर्वहारा समाज के स्वतंत्र बयार का स्वागत। राजधानी के दिल्ली यूनिवर्सिटी में एवीबीपी को एक और सकारात्मक जीत की बधाई।
जातिवाद के सर्वनाश की कामना सहित : जय हिंद।
जेनयू में तेज चलती खिलाफत की आंधी में.... पेंग्विनों की तरह एक दूसरे के संग लिपट-चिपट के अस्तित्व रक्षा की जुगत करते हुए....सारे वाम फेडरेशनों ने गिरोह की शक्ल में एक होकर... चुनावों में आखिर हराया किसे है ?
राष्ट्रवाद को या वाम द्वारा सर्वहारा समाज की पहचान दिए हुए दलित फेडरेशन.....बापसा (बिरसा-फूले-अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) को ?
सीटवार वोटों की संख्या देखिये और हर जगह बापसा को मिले मत देखिये। जेनयू में वाम ने दिखाया कि वह अब दलितों के मुक़ाबिल खड़ा है मैदान में। तो दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने... वामपंथ की दूकान से अलग हो... खुद के स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण किया। रही बात एवीबीपी की, तो यह संगठन जेनयू छात्र राजनीति में अपनी सतत जगह बना रहा है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
चिंतन करिये इस ऐतिहासिक दुर्घटना पर : यह वाम दर्शन की जीत है या हार ?
पढ़िये बापसा का जेनयू चुनावों में अध्यक्ष पद प्रत्याशी राहुल क्या कहता रहा अपनी कैम्पेनिंग में :
आरक्षण से लेकर, हॉस्टल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, गैर-अंग्रेजी माध्यम से आए छात्रों के साथ भेदभाव, वाइवा में वंचित समुदाय के साथ भेदभाव पर लेफ्ट ने सिर्फ जुमले-बाजी की है। नारी-स्वतंत्रता और प्रतिनिधित्व के सवाल पर लेफ्ट एक्टिविस्ट कविता कृष्णन जी बताएं....ऐसी कौन सी बात है की उनकी पार्टी में झंडे ढ़ोने वाली, रणवीर सेना के हांथों शिकार होने वाली किसी मुसहर लड़की को वह स्थान नहीं मिला, जहाँ आज उनकी तथाकथित नेता है। ऐसी वो कौन सी बात है जो कविता कृष्णन बोल सकती है तथा एक मुसहर लड़की नहीं बोल सकती ? बलात्कार की शिकार पर क्यों लेफ्ट मौन और बलात्कारी पर नर्म दिखता है ?
रोहित वेमुला का इस्तेमाल कर लेफ्ट ने उसकी आत्महत्या की दुखद स्थितियों का निर्माण किया। उसकी शहादत के बाद आंदोलन को दिल्ली लाकर कश्मीर की आजादी जैसे वामपंथी और मुस्लिम गठजोड़ के साथ इस्तेमाल किया। आज वेमुला से उठा आंदोलन लेफ्ट के हाथों मार दिया गया। दलितों को ठगा है लेफ्ट ने जिसकी वजह से अब दलित, आदिवासी अपने खुद के बैनर पर खड़ा है।
जेनयू ने यह दिखाया कि भारतीय वामपंथी छात्र राजनीति से सर्वहारा (दलित, वंचित, आदिवासी) अब अलग है और लेफ्ट के पास जो बचा रह गया.... वो महज बुर्जुआ तपका है जिसकी उपलब्धि है.... नए अध्यक्ष के तौर पर... मोहित पांडे सहित चार प्रमुख पदों में से तीन पर... विशुद्ध मनुवादी और ब्राम्हणवादी सत्ता की स्थापना।
वामपंथ के शेष रह गए एक कैंपस भर की बिसात को भी समाप्त करने का काम अब दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने बापसा के बैनर तले लिया है : जो देश और समाज के व्यापक हित में है।
भारत की बर्बादी, भारत से जंग, देश के सौ टुकड़े के साथ लाल सलाम-इंशाअल्लाह के मजहबी गिरोहबंदी के खिलाफ.... जेनयू से शुरू इस नयी सर्वहारा समाज के स्वतंत्र बयार का स्वागत। राजधानी के दिल्ली यूनिवर्सिटी में एवीबीपी को एक और सकारात्मक जीत की बधाई।
जातिवाद के सर्वनाश की कामना सहित : जय हिंद।
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