तारिक फ़तेह ने जब बयान की सच्चाई तो झुंझलाए मुन्नवर राना ने यूँ खीझ मिटाई :

कल तारिक फतेह साहेब को एक टीवी शो की अदालत में बोलते हुए सुना और उस पर मुन्नवर राना साहेब का बतौर जज सुनाया फैसला भी।

ठेठ पंजाबी मुस्लिम तारिक फतेह, जिन्हें मैं कुछ सालों से फॉलो करता और पढ़ता रहा हूँ.... जब यह खरा और नंगा सच सामने रख रहे हों कि : साहेब ! आपने पाकिस्तान बना के अलग किसे किया ? उन पंजाबियों, सिंधियों, बलूचियों और बंगालियों को..... जिनका इस्लाम एक मजहब के सिवाय..... उर्दू जुबां और संस्कृति से कोई वास्ता ही न रहा कभी ?

"आँगन की चारपाई पर वो सूखती मिर्च छोड़ आए हैं".... जैसी भावपूर्ण लाइनें रचने वाले मुन्नवर साहेब.... भला तारिक साहेब के लिए और क्या कहते.... अगर लॉफ्टर के कलाकार न कहते तो ! ऐसा कहने के पीछे उनका जाती मामला है जिसका अंदाजा शायद नीचे आपको हो, जिसे मुझ जैसा अदना फेसबुकिया भी सालों से यहीं लिखता रहा है।

बटवारे में रेडक्लिफ साहेब ने नक्शे में जो लाइनें खींच के हिस्सा किया उस हिस्से में दरअसल.... आबादी के लिहाज से बहुसंख्यक लेकिन सांस्कृतिक तौर पर एकदम अलहदा... वे मुसलमान आये जिन्होंने कभी जिन्ना के मुस्लिम लीग को आजादी के पहले के आम चुनावों में... कांग्रेस के सामने अपना भारी समर्थन दिया ही नहीं।

उर्दू बोलने वाले उत्तर भारत के वे इलाके और आबादी जिन्होंने... गाजीपुर जैसी सीट पर कांग्रेस के मुकाबले मुस्लिम लीग के उम्मीदवार को जिताया, क्या वे कायदेआजम के पाकिस्तान गये ? आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि जिन्ना का आर्थिक मददगार और मुस्लिम लीग का कोषाध्यक्ष... अवध का राजा महमूदाबाद ही था जिसकी तमाम फैली संपत्तियों को अभी महीनों पहले ही शत्रु संपत्ति घोषित कर काबिज हो पाई है केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार।

कभी फुर्सत मिले तो मेरी बात को और विस्तार देने के लिए.... राही मासूम रजा साहेब के बटवारे की पृष्ठिभूमि पर लिखे नॉवेल "आधा गाँव" को जरूर पढ़ियेगा। गाजीपुर की जमीन से रिश्ता रखने वाले राही साहेब के इस उपन्यास का हर चरित्र आपको मेरी बात को विस्तार देता मिलेगा।

चरित्र 1 : "लड़ के लेंगे पाकिस्तान" कहते लौंडे के झूमते हुए घर में घुसने पर जुम्मन बोलिन : अबे केसे लड़ के लेबे पाकिस्तान ? कउन देई पाकिस्तान ? लौंडे के पास कोई जबाब नहीं।

चरित्र 2 : अच्छा सुनो ! अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से आये हो बाबू हमरे गाँव कायदेआजम का परचार करे.... ई बताओ हमार गाँव तुमरे कायदेआजम के पाकिस्तान में जाइगा ? जबाब : आपके गाँव का तो नहीं कह सकता लेकिन हमारी कोशिश है कि यूनिवर्सिटी पाकिस्तान में जाए। इस पर जुम्मन का प्रति प्रश्न : अमे ! बाबा-दादा की मजार हियां, गली गली बिखरी मुहब्बत हियां, जरूरत पर उधारी देवे वाले सेठ-महाजन हियां : हम का करे जाइब तोरे पाकिस्तान ?

ये संवाद जिन्हें मैं कॉपी नहीं बल्कि याददाश्त के भरोसे लिख रहा हूँ जानबूझ के, क्योंकि आधा गाँव के सारे संवाद हूबहू यहां लिख देने से.... मेरे ऊपर अश्लीलता छापने का पाखंडी आरोप भी लग जाएगा, लग जाता रहा है। ध्यान रहे .... ये बातें वो राही साहेब लिखते हैं जो पाकिस्तान नहीं गए, न ही उस तबीयत के रहे कभी, सो लिख भी वही सकते थे। ये वो राही साहेब हैं जिनका पात्र इसी नॉवेल में "नारा-ए-तकबीर : अल्लाहो अकबर" सुन कर असहज हो जाता है और दीन के "मुहम्मदी" नारों की तलाश करता है।

लेकिन इन्ही इलाकों से लीग को जिताने वाले, समर्थन देने वाले.... अधिसंख्यक कहाँ रहे ? यूपी, बिहार समेंत हिंदी-उर्दू पट्टी के जो गये.... वो मुहाजिर (शरणार्थी) के तौर पर आज भी पाकिस्तान में बुनियादी नागरिक अधिकारों से वंचित हैं और पंजाबी मुसलमानों की नजर में उत्तर भारत के भैया की ही औकात रखते हैं।

मुनव्वर साहेब के फैसले वाली टिप्पणी में छिपा ये वही दर्द था, जिसे तारिक फतेह ने बड़े तरीके से नश्तर की धार पर उतार दिया। जबकि इस ठेठ पंजाबी मुसलमान की बातों में वो हकीकत थी... जिसे आज भी समझना नहीं चाहता जानबूझ कर पाखण्ड बघारने वाला हिंदुस्तान, जिसे समझने न दिया कभी गजवा-ए-हिन्द सीने में दबाये कुनबों के साथ वामपंथी कारकूनों ने।

जो पाक गये वो भी आइडेंटिटी क्राइसिस के शिकार, जो यहां शेष रह गए लीगी और अरबी जेहनियत के मुसलमान.... वे भी पहचान के इसी संकट के शिकार। जो खुद को भारतीय संस्कृति से जोड़े रहे, वे इसी देश की मुख्यधारा में मौज और ठसक के साथ थे, हैं और रहेंगे।

मुन्नवर साहेब..... मेरी याद से खिसके आपके एक शेर जिसकी आखिरी लाइन कुछ यूँ है : ....... 'ये दिल्ली की सुल्तानी हमारी है'.... से आपकी और आप जैसों की मनोदशा को खूब समझा जा सकता है। यह शेर जो मुझे याद न आ रहा.... का भावार्थ है : अंग्रेजो ने हिंदुस्तान की सत्ता मुगलों से ली लेकिन वापस दूसरों को कर के चले गए।

दरअसल जब आप तारिक फतेह के लिए लॉफ्टर कलाकार की बात कह रहे थे : कलाकार आपके भीतर का ट्रेजडी किंग था जनाब, जिसे मुझ जैसा अपनी कूबत भर... कायदे से समझता है।

राना साहेब ! तथाकथित असहिष्णुता के प्रायोजित वामपंथी गिरोहबाजी शो में... अवॉर्ड वापसी, न आपको भूली होगी... न ही इस देश को भूलेगी, न ही भूलनी चाहिए। मेरी तरफ से आपको साधुवाद : आप कल बेहद सहिष्णु दिखे मुझे।

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