बात शुरू होती है साल 1980-82 से। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. वी. पी. सिंह ने दस्यु उन्मूलन का अभियान शुरू किया और खास कर चंबल के बीहड़ों के डाकूओं के इनकाउंटर शुरू हुए। इसी क्रम में मार्च 1982 में कुख्यात डाकू छविराम को उसके 13 गैंग सदस्यों के साथ इनकाउंटर में मार दिया गया। छविराम का गिरोह बड़ा था और इनकाउंटर के बाद भी उस गिरोह के कई सदस्य और सफेदपोश मददगार बचे रह गए थे। उसी लिस्ट में समाजवादी पुरुष श्री शिवपाल सिंह यादव जी भी शामिल थे। अब चूंकि वी पी सिंह दस्यु उन्मूलन अभियान को लेकर बेहद सख्त थे और यहां तक कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री और समाजवादी शिखर पुरुष श्री मुलायम सिंह जी का नाम भी इनकाउंटर की लिस्ट में डाल दिया था। सो आदरणीय शिवपाल जी कैसे बचते! हालांकि तब इनका कद इतना भी बड़ा नहीं था कि आपका नाम इनकाउंटर की लिस्ट में आता। लेकिन इतने सक्रिय तो थे ही घर-द्वार छोड़ कर फरार रहें। ऐसा हुआ भी और शिवपाल जी अपने गांव सैफई से फरार होकर नजदीक के ही एक मक्के के बड़े खेत में अपना डेरा जमा कर जमीनी समाजवादी चिंतन और साधना में रमने को मजबूर
समृद्ध संस्कृति, कला और विरासत की भूमि है भारत जहाँ लोगों में इंसानियत, उदारता, एकता, धर्मनिर्पेक्षता, मजबूत सामाजिक संबंध और दूसरे अच्छे गुण हैं। दूसरे धर्मों के लोगों द्वारा ढ़ेर सारी क्रोधी क्रियाओं के बावजूद भी भारतीय हमेशा अपने दयालु और सौम्य व्यवहार के लिये जाने जाते हैं। अपने सिद्धांतों और विचारों में बिना किसी बदलाव के अपनी सेवा-भाव और शांत स्वाभाव के लिये भारतीयों की हमेशा तारीफ होती है। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं पर बिन्दुवार कुछ बातें देखी जा सकती हैं। प्राचीनता - भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाये गये शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा कुछ अन्य नृवंशीय एवं पुरातत्त्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत भूमि आदि मानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के विवरणों से भी प्रमाणित होता है कि आज से लगभग पाँच हज़ार वर्ष पहले उत्तरी भारत के बहुत बड़े भाग में एक उच्च कोटि की संस्कृति का विकास हो चुका था। इसी प्रकार वेदों में परिलक्षित भारतीय संस्कृति न केवल प्राचीनता का प्रमाण है
बधाई हो कामरेड ! जेनयू में तेज चलती खिलाफत की आंधी में.... पेंग्विनों की तरह एक दूसरे के संग लिपट-चिपट के अस्तित्व रक्षा की जुगत करते हुए....सारे वाम फेडरेशनों ने गिरोह की शक्ल में एक होकर... चुनावों में आखिर हराया किसे है ? राष्ट्रवाद को या वाम द्वारा सर्वहारा समाज की पहचान दिए हुए दलित फेडरेशन.....बापसा (बिरसा-फूले-अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) को ? सीटवार वोटों की संख्या देखिये और हर जगह बापसा को मिले मत देखिये। जेनयू में वाम ने दिखाया कि वह अब दलितों के मुक़ाबिल खड़ा है मैदान में। तो दलितों, वंचितों, आदिवासियों ने... वामपंथ की दूकान से अलग हो... खुद के स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण किया। रही बात एवीबीपी की, तो यह संगठन जेनयू छात्र राजनीति में अपनी सतत जगह बना रहा है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। चिंतन करिये इस ऐतिहासिक दुर्घटना पर : यह वाम दर्शन की जीत है या हार ? पढ़िये बापसा का जेनयू चुनावों में अध्यक्ष पद प्रत्याशी राहुल क्या कहता रहा अपनी कैम्पेनिंग में : आरक्षण से लेकर, हॉस्टल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, गैर-अंग्रेजी माध्यम से आए छात्रों के साथ भेदभाव, वाइवा में वंचित समुदाय क
Good Luck...!!
ReplyDeleteधन्यवाद रूबी :) पहली शाबाशी की बोहनी के लिए :)
Deleteबधाई एवं शुभकामनाएँ (y)
ReplyDeleteलेकिन सिर्फ कोप और पित्त तक न रहे मामला... ये ख़याल रखना
हाँ ... पूरा ध्यान रहेगा माते :)
Deleteजय हो...बोहनी और बट्टा तो हो गया...बस गुरु सट्टा भी होय जाए... :)
ReplyDeleteबिलकुल दादा वो भी होगा लाहे लाहे...
DeleteCongratulations Bobby bhai !
ReplyDeleteधन्यवाद अमर भाई ....
Deleteचलिए इसी नाम पे हमरो तरफ से बोहनी
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