बात शुरू होती है साल 1980-82 से। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. वी. पी. सिंह ने दस्यु उन्मूलन का अभियान शुरू किया और खास कर चंबल के बीहड़ों के डाकूओं के इनकाउंटर शुरू हुए। इसी क्रम में मार्च 1982 में कुख्यात डाकू छविराम को उसके 13 गैंग सदस्यों के साथ इनकाउंटर में मार दिया गया। छविराम का गिरोह बड़ा था और इनकाउंटर के बाद भी उस गिरोह के कई सदस्य और सफेदपोश मददगार बचे रह गए थे। उसी लिस्ट में समाजवादी पुरुष श्री शिवपाल सिंह यादव जी भी शामिल थे। अब चूंकि वी पी सिंह दस्यु उन्मूलन अभियान को लेकर बेहद सख्त थे और यहां तक कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री और समाजवादी शिखर पुरुष श्री मुलायम सिंह जी का नाम भी इनकाउंटर की लिस्ट में डाल दिया था। सो आदरणीय शिवपाल जी कैसे बचते! हालांकि तब इनका कद इतना भी बड़ा नहीं था कि आपका नाम इनकाउंटर की लिस्ट में आता। लेकिन इतने सक्रिय तो थे ही घर-द्वार छोड़ कर फरार रहें। ऐसा हुआ भी और शिवपाल जी अपने गांव सैफई से फरार होकर नजदीक के ही एक मक्के के बड़े खेत में अपना डेरा जमा कर जमीनी समाजवादी चिंतन और साधना में रमने...
कहां से : कश्मीर घाटी कौन : कश्मीरी पंडित कब से : 1989 कितने : तकरीबन 3,00,000 हालिया केंद्र सरकार की बातों के बीच आधिकारिक रूप से राज्य सरकार कश्मीरी पंडितों को घाटी में लौटने के लिए कहती रही है, लेकिन क्या वहां का बहुसंख्यक समाज इस समुदाय को अपनाने के लिए तैयार हैं ? कश्मीर घाटी में हम पंडितों की वापसी का स्वागत करते हैं। इसमें हमारी तरफ से कोई रुकावट नहीं है-सैयद अली शाह गिलानी। कहने को तो बदजुबानी करने वाला ये शख्स भी यही कहता है। लेकिन हकीकत की जमीन यह नही कहती। घाटी से कश्मीरी पंडितों को विस्थापित हुए 23 साल हो गए। पंडितों की एक नई पीढ़ी सामने है और सामने है यह प्रश्न भी कि क्या कभी ये लोग वापस अपने घर कश्मीर जा पाएंगे।14 सितंबर, 1989 को भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुआ आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया। टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई। फिर 13 फरवरी 90 को श्रीनगर के टेल...
पड़ोस के बांग्लादेशी मजहबी दंगों की बुनियाद पर तस्लीमा नसरीन के उपन्यास 'लज्जा' के हालात और उसके किरदारों.. सुरंजन, माया.. उनके माँ-बाप किरणमयी और सुधामय। सुरंजन की प्रेमिका परवीना, उसका दोस्त हैदर, मुस्लिम वेश्या शमीमा और दस साला छोटी लड़की मादल। वो उम्र में बड़ी और हिन्दू होने के नाते माया का बलात्कार और उम्र के चलते मादल का बच जाना। वो सड़कों पर उन्मादी हूजूम, हत्या, दंगे, आगजनी और बलबा....! उपन्यास के किरदार.. ये वही सुधामय थे जिन्होंने चौंसठ में अयूबशाही के विरूद्ध नारा लगाया था "पूर्वी पाकिस्तान डटकर खड़े होओ।" लेकिन बदले में देश से उन्हें क्या मिला? किरणमयी ने पचहत्तर के बाद सिंदूर लगाना छोड़ दिया तथा सुधामय ने धोती पहनना छोड़ दिया। सब कुछ मौजूद हो सकता है आपके अपने बंगाल के सीमांत जिले मालदा में जहाँ रिहाइश के मुताबिक हिन्दू आबादी संख्या में कम है। कल मालदा की घटना.. सड़कों पर लाखों की उन्मादी भीड़, आगजनी, हिंसा, हत्या.. एक नजीर हो सकती है कि अगर जमीन पर हालात मुनाफिक हों तो बजह-बेवजह.. लज्जा जैसे उपन्यासों को लिखने की स्याही देश के सूबे बंगाल में भी पैदा ...
Good Luck...!!
ReplyDeleteधन्यवाद रूबी :) पहली शाबाशी की बोहनी के लिए :)
Deleteबधाई एवं शुभकामनाएँ (y)
ReplyDeleteलेकिन सिर्फ कोप और पित्त तक न रहे मामला... ये ख़याल रखना
हाँ ... पूरा ध्यान रहेगा माते :)
Deleteजय हो...बोहनी और बट्टा तो हो गया...बस गुरु सट्टा भी होय जाए... :)
ReplyDeleteबिलकुल दादा वो भी होगा लाहे लाहे...
DeleteCongratulations Bobby bhai !
ReplyDeleteधन्यवाद अमर भाई ....
Deleteचलिए इसी नाम पे हमरो तरफ से बोहनी
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