आईने थप्पड़ भी मारते हैं..

पड़ोस के बांग्लादेशी मजहबी दंगों की बुनियाद पर तस्लीमा नसरीन के उपन्यास 'लज्जा' के हालात और उसके किरदारों.. सुरंजन, माया.. उनके माँ-बाप किरणमयी और सुधामय। सुरंजन की प्रेमिका परवीना, उसका दोस्त हैदर, मुस्लिम वेश्या शमीमा और दस साला छोटी लड़की मादल। वो उम्र में बड़ी और हिन्दू होने के नाते माया का बलात्कार और उम्र के चलते मादल का बच जाना। वो सड़कों पर उन्मादी हूजूम, हत्या, दंगे, आगजनी और बलबा....!

उपन्यास के किरदार.. ये वही सुधामय थे जिन्होंने चौंसठ में अयूबशाही के विरूद्ध नारा लगाया था "पूर्वी पाकिस्तान डटकर खड़े होओ।" लेकिन बदले में देश से उन्हें क्या मिला? किरणमयी ने पचहत्तर के बाद सिंदूर लगाना छोड़ दिया तथा सुधामय ने धोती पहनना छोड़ दिया।

सब कुछ मौजूद हो सकता है आपके अपने बंगाल के सीमांत जिले मालदा में जहाँ रिहाइश के मुताबिक हिन्दू आबादी संख्या में कम है। कल मालदा की घटना.. सड़कों पर लाखों की उन्मादी भीड़, आगजनी, हिंसा, हत्या.. एक नजीर हो सकती है कि अगर जमीन पर हालात मुनाफिक हों तो बजह-बेवजह.. लज्जा जैसे उपन्यासों को लिखने की स्याही देश के सूबे बंगाल में भी पैदा की जा सकती है।

दिल्ली से लगायत चेन्नई और लखनऊ-कानपुर तक कूड़ा बिनते-उठाते, अपराध करते.. और बंगाल में लाखों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को मुहब्बतें बाँटते ये वोटों के खरीददार और पैरोकार... बांग्लादेशी जमीन से मौत का फतवा हासिल करने वाली बांग्लादेश से निर्वासित और भारत में शरणार्थी... तस्लीमा नसरीन को उनकी मंशा के मुताबिक भारतीय नागरिकता बहाली के लाल फूल क्यों नहीं देते ?

भारत सरकार को बांग्लादेशी निर्वासित लेखिका तस्लीमा और पाकिस्तानी मूल के कनाडाई विचारक तारेक फतह के भारतीय नागरिकता चाहने पर फैसला लेते हुए इन्हें नागरिकता फौरन देनी चाहिए।

देश में सहिष्णुता तलाशते और उसकी कीमत में अवॉर्ड वापसी की गिरोहबाजी तौलते.. गिरोही और पाखंडी शुद्धतावाद के बीच जब शक्लें निहारने को घर में शीशे धुंधले पड़ने लगें तो कुछ बेहतर आईने बाहर से मंगा लेने में कोई हर्ज नहीं। आईने थप्पड़ भी मारते हैं और टूटते भी नहीं ऐसा करने में।

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