विभेद का निवारण..

अल्पंसख्यकों के प्रति विभेद का निवारण और उनके संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के उप आयोग का संकल्प: 1950 है कि- ‘अल्पसंख्यकों को रक्षोपाय देने का एकमात्र उद्देश्य यह था कि जो बहुसंख्यक समुदाय  प्रतिनिधि लोकतन्त्र प्रणाली के अधीन देश का प्रशासन कर रहा है, वह उनके साथ विभेद न करे। किन्तु इसमें शर्त यह है कि अल्पसंख्यक उस राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बने रहें जिसके वे राष्ट्रिक हैं और अपनी स्थिति का लाभ उठाकर राज्य के भीतर राज्य न बनाएं।’

हमारे देश में संविधान निर्माताओं का भी यही उद्देश्य था। हर अल्पसंख्यक समुदाय (वास्तव में तो भारत में कोई अल्पसंख्यक है ही नहीं क्यों की हम धार्मिक आधार पर उपजे देश हैं ही नहीं) को अपने सम्प्रदाय, मत, पन्थ की स्वतन्त्रता को हर परिस्थिति में सुरक्षित रखने की गारण्टी देने का प्रयास हमारे संविधान निर्माताओं ने किया, हम ये मान लेते हैं। किन्तु इसी प्रयास का उचित / अनुचित लाभ हमेशा उठाये जाने का काम होता रहा है।

हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि हमारे संविधान निर्माताओं ने कहीं भी द्विराष्ट्रवाद यहाँ तक कि दोहरी नागरिकता की भी की वकालत नहीं की। किन्तु संविधान ने जिन्हें अल्पसंख्यक माना उनके विषय में यह कहीं भी प्राविधान नहीं किया कि ये अल्पसंख्यक अनिवार्यत: भारत के प्रति निष्ठावान बने रहेंगे, अन्यथा उनकी अल्पसंख्यक होने के नाम पर मिलने वाली सुविधाओं का हनन कर लिया जायेगा। कहने का अभिप्राय ये है कि जहाँ हमने अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग किया है वहीं उसकी परिभाषा के साथ-साथ उसमें राष्ट्र की अपेक्षाओं का उल्लेख भी अनिवार्यत: हमें करना चाहिए था। राष्ट्र की उसके प्रति अपेक्षाएं ही उसके अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य होने की अर्हताएँ मानी जातीं।

यदि ऐसा हो गया होता तो इस देश में जन्म लेकर, यहाँ खेल-हँस-खाकर भी इसे ‘मादरेवतन’ या वन्देमातरम् कहने पर आपत्ति करने वाला यहाँ कोई नहीं होता और अगर ऐसा हो जाय तो कोई नहीं होगा।

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