हाथी मेरे साथी पर पशुवत केरल :

ईश्वर की धरती जो अब भारत में एकमात्र कम्युनिस्ट सत्ता की धरती भी रह गयी केरल में राजनीतिक.. खासकर चुनावी हिंसा, हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है। साल 2012 में सीपीएम के नेता रहे टी.पी. चंद्रसेखरन की काट-काट कर की गई बर्बर हत्या इसी  सिलसिले की कड़ी कही जायेगी। साल 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले और वाम एलडीएफ की जीत के बाद भी हिंसा-हत्या का सिलसिला कन्नूर तक चल ही रहा था। इन तमाम सालों में राजनीतिक हिंसा, हत्याओं के साथ विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ धर्मिक हिंसा, हत्याओं के भी सिलसिले आम हैं।

इस बीच बताते चलें... चौंकिएगा नहीं, राजनैतिक विरोध में टी.पी. चंद्रसेखरन की साल 2012 में क्रूर और मध्ययुगीन शैली ये यह हत्या, कम्युनिस्ट पार्टी... सीपीएम की ही तरफ़ से की गई, वजह ये कि चंद्रशेखरन ने पार्टी की नीतियों की आलोचना कर एक दूसरी पार्टी, 'रेवेल्यूश्नरी मार्कसिस्ट पार्टी' बना ली थी।

"सीपीएम लोगों की ज़िंदगी में घुस गया है, यहां तक की गांववालों को अपने घर की शादी में कांग्रेस-समर्थक दोस्त तक को बुलाने की आज़ादी नहीं है, अब ऐसे में लोगों और असलहे के बल के साथ आरएसएस अपना प्रचार करेगा तो हिंसा तो होगी ही" : यह कहना है सम्मानित मलयालम लेखक और राजनीतिक विश्लेषक पॉल ज़कारिया का।

तो फिर सवाल उठता है केरल की राजनीति में हिंसा, इंसानी हत्याएं करता कौन है? बीते चार दशकों के दौरान अकेले 225 से ज्यादा घोषित राजनैतिक हत्याएं खुद से जुड़े लोगों की किये जाने का दावा करता है आरएसएस।

2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही लाल सत्तात्मक केरल चौकन्ना हो गया। उसे देशव्यापी राष्ट्रवाद, भारतीय संस्कृतिवाद के उभार के खिलाफ केरल में  ईसाई-मुस्लिम-तथाकथित मूल निवासी गठजोड़ के समीकरण का अवसर मिला जो विशुद्ध वैचारिक घृणा पर आधारित था। कांग्रेस हमेशा की तरह अपने पसंद की राजनीतिक जमीन पर सत्ता की प्रादेशिक छाया पा ही रही थी। यहीं से क्रूरता पशुवत होती गयी और भोजन स्वंत्रता के नाम पर गाय की सार्वजनिक हत्या कांग्रेसी सौजन्य से संम्पन्न की गई। 2019 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष का केरल से चुनाव लड़ना और जीतना इस नफरती गठजोड़ को सिद्ध करता है।

कोई सीधा संबंध अभी तक न होने के बावजूद मुझे यह कहने में और मानने में कोई हिचक नहीं कि केरल जैसे राज्य में जो हाथी जैसे पशु को न सिर्फ देवत्व और पूज्य भाव ही नहीं बल्कि मित्र, सेवक, सहयोगी भाव से देखने का इतिहास रखता है लाल आतंक और घृणा की धरती बनने से पहले... एक गर्भवती हाथी की क्रूर हत्या इसी वैचारिक नफरत की मानसिकता से उपजा अपराध है।

लेकिन केरल में सत्ताधारी वामपंथ इतना हिंसक है क्यों?

केरल में भाजपा का एक निर्वाचित विधायक कोई बड़ी समस्या नही होनी चाहिए वाम गठबंधन की एलडीएफ सरकार के लिए लेकिन चुनावों में भाजपा को हासिल 15 प्रतिशत वोट और सांस्कृतिक जमीन पर संघ की जमीनी पहुंच एक बड़ी चिंता का सबब है।

केरल में संघ और भाजपा के साथ आता कॉडर और कार्यकर्ता सीपीएम से ही हैं ज्यादातर यह एक रोचक पहलू है राज्य की बदलती राजनीति का। संतोष और भली बात यह है कि सीपीएम छोड़ कर भाजपा से जुड़ते लोग इसकी सबसे बड़ी और एकमात्र वजह राज्य में सीपीएम और वाम दलों द्वारा प्रायोजित हिंसा और हत्याएं ही बताते हैं। लेकिन राज्य के ग्रामीण इलाकों और वामपंथी प्रभुत्व के बीच जमीन पर नाक से नाक मिला कर खड़ा होने में इन्ही पूर्व सीपीएम काडरों की बड़ी भूमिका है.. यह भी सच है। इस ठेठ वामपंथी शैली और तेवर में ही जबाब देने की क्षमता को बेहतर पहचानते हुए सीपीएम इस बात को मानती है कि जमीन पर उसे चुनौती अब आरएसएस से वैचारिक और भाजपा से राजनैतिक फ्रंट पर है।

पश्चिम बंगाल में तीन से अधिक दशकों के वामपंथी सत्ता का अंत और पिछले विधानसभा चुनावों ने बंगाल में वामपंथ के अस्तित्व पर ही जो सवालिया निशान ममता बनर्जी ने लगाया उसे जरा यहां देखने की जरूरत है। तृणमूल ने बंगाल में जमीन पर सीपीएम और वामपंथी कॉडर, कार्यकर्ता सहित राजनीति की हिंसा आधारित शैली को खुद से जोड़ा और सीपीएम के खेमे से बाहर के लोगों के समर्थन में टक्कर देने जमीन पर हर तरह की जबाबी संभावनाओं के साथ खड़े नजर आने लगे। इसने प्रतिरोध को एक आधार दिया और बड़ा वोट आज ममता और तृणमूल के साथ हैं। नियति का खेल देखिये... बंगाल में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने तक की मजबूरी तक पहुंची सीपीएम और वामदल कहीं कोई राजनितिक जीवन न पा सकें : इसके चलते बंगाल के वोटर ने ममता को एक तरफा वोट दिया। यह आलम है वाम से नफरत का उस बंगाल में जो देश में उसकी वैचारिक मातृभूमि जैसी रही है।

भाजपा के 15 % वोट और एक निर्वाचित विधायक दरअसल वामपंथ के एकमात्र बचे केरल मॉडल के अस्तित्व अधिग्रहण की औपचारिक शुरुआत है। बंगाल का कभी वामपंथी वोटर रहा बोंगाली आज भाजपा वोटर है बूथ पर... जो और बढ़ता जाने वाला है और खुलता जाने वाला है।

बंगाल में टीएमसी के हाथों वाम के अस्तित्व अधिग्रहण के मूल मंत्र की याद करें और एक विज्ञापन का ध्यान धरें : जब वही सफेदी और चमक कम दामों में मिले, तो कोई वो क्यों ले ! ये न ले?

और अंत में :

केरल आदि राज्यों में किसानों के बीच अपनी फसलों वगैरा को जंगली सूअर आदि से बचाने के लिए पटाखों से भरे फल से एक कारगर जुगाड़ बनाने और उसके इस्तेमाल की परंपरा रही है और इसका पशुओं पर इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है लेकिन दक्षिण के केरल जैसे राज्य में जहां हाथी स्थानीय संस्कृति, समाज का हिस्सा है... वहां हाथी के साथ ऐसा होना जरूर मानसिकता के स्तर पर गंभीर नकारात्मकता उपजने की तरफ संकेत करता है।

वह गर्भ से थी, भूखी थी, तब भी मारी गयी क्योंकि वह : हाथी नहीं गणेश था, संभवतः इसीलिए विद्वेष था!

(#अवनीश पी. एन. शर्मा)


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