17 लाख बेघर लोग : (4)
कहां से : मीरपुर-मुजफ्फराबाद क्षेत्र (वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर)
कब से : 1947
कितने : तकरीबन 12 लाख
सरकार तर्क देती है कि जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का जम्मू और कश्मीर में विलय होगा तब इन लोगों को वहां दोबारा बसाया जाएगा।
इन शरणार्थियों ने सोचा था कि बस कुछ ही दिनों की बात है, आक्रमणकारियों को खदेड़े जाने के बाद वे वापस अपने घर चले जाएंगे। लेकिन वह दिन आज तक नहीं आया। इन 12 लाख में 10 लाख आज भी जम्मू क्षेत्र में और बाकी 2 लाख देश के दूसरे हिस्सों में बसे हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच पहले युद्ध की शुरुआत 22 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर के मुजफ्फराबाद पर एक कबाइली हमले के रूप में हुई। फिर मीरपुर और पुंछ आदि इलाके हमलावरों का शिकार होते गए।
इस हमले का एक कारण तो स्पष्ट था कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। इसके अलावा उसकी एक और भी रणनीति थी- पूरे इलाके से हिंदुओं और सिखों को बाहर खदेड़ने की। इसमें वह सफल भी हुआ। इस क्रम में हिंसा और हत्याएं भी । उस पूरे आतंक के माहौल में मीरपुर, मुजफ्फराबाद और पुंछ आदि के उन इलाकों से बड़ी संख्या में लोग शरण लेने जम्मू की तरफ आ गए।कई दिनों तक ये लोग बिना किसी सहायता के खुले आसमान के नीचे अपने दिन गुजारते रहे। कुछ समय बाद भारत सरकार ने इन्हें कैंपों में रखवाया।
जिस मीरपुर, मुजफ्फराबाद और पुंछ के इलाके से ये लोग आए थे आज उस पूरे इलाके पर पाकिस्तान का कब्जा है। इस इलाके को पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है और भारत पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) आज इन लोगों को बेघर और अपने ही राज्य जम्मू-कश्मीर में शरणार्थी हुए 67 साल हो गए हैं। इनकी संख्या 12 लाख के करीब है जिनमें से करीब 10 लाख जम्मू में रहते हैं और बाकी के दो लाख के करीब देश के अन्य हिस्सों में। सरकारों की इन लोगों के प्रति उदासीनता का आलम यह है कि इतने साल बाद आज भी ये लोग कैंपों में ही रह रहे हैं।
पीओके के शरणार्थियों के मामले में सरकार का शुरू से रवैया कैसा रहा इसका नमूना इस एक उदाहरण से भी थोड़ा-बहुत समझा जा सकता है। सरकार ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में 14 मई, 2002 को यह जानकारी दी थी कि1947 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आक्रमण के परिणामस्वरूप पाक अधिकृत कश्मीर से लगभग 32 हजार परिवार देश के इस भाग में आ गए थे। इनमें से पंजीकृत किए गए परिवारों की संख्या 31 हजार 619 है। इसके अलावा 9,500 परिवार भी थे जिन्हें सरकार ने पंजीकृत नहीं किया।
इन परिवारों का पंजीकरण न करने के जो कारण सरकार ने बताए थे वे उसकी असंवेदनशीलता दिखाने के लिए पर्याप्त हैं
क्योंकि परिवार शिविरों में नहीं ठहरे थे. यानी अगर पीओके से निकले किसी परिवार ने अपने किसी रिश्तेदार के यहां उस समय शरण ले ली होगी तो फिर वह सरकारी सहायता का हकदार नहीं है
परिवार के मुखिया ने परिवार के साथ प्रवास नहीं किया। यानी अगर किसी परिवार के मुखिया की वहां हत्या कर दी गई हो या फिर कत्लेआम के उस माहौल में एक- दूसरे से बिछुड़ गए हों तो फिर ऐसा परिवार सरकारी सहायता का हकदार नहीं है।
वे परिवार जिनकी मासिक आय 300 रुपये से अधिक थी यानी पीओके में रहते हुए अगर इनकी आमदनी 300 रुपये से अधिक थी तो उन्हें सरकारी सहयोग नहीं मिल सकता।
वे परिवार जिन्होंने संकट के उस काल में यानी सितंबर, 1947 और दिसंबर, 1950 के दौरान प्रवास नहीं किया।
पीओके के शरणार्थियों के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि सरकार उन्हें शरणार्थी ही नहीं मानती। दरअसल भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी, 1994 को सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग हैं और इस राज्य के वे हिस्से जिन पर आक्रमण करके पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है उसे वह खाली करे।
पीओके के शरणार्थियों के अधिकारों पर काम करने वाले कहा करते हैं कि भारत सरकार के मुताबिक हम राज्य के एक कोने से दूसरे कोने में आ गए हैं। सरकार कहती है कि एक दिन हम उस हिस्से को पाकिस्तान से खाली करा देंगे और फिर आप लोगों को वापस वहां बसा दिया जाएगा। लेकिन ये करिश्मा कब होगा पता नही।
12 लाख के करीब ( जिनमे से 10 लाख के लगभग जम्मू क्षेत्र में रहते हैं बाकी देश के दूसरे हिस्सों में) इन पीओके शरणार्थियों को आज तक उनके उन घरों, जमीन और जायदाद का कोई मुआवजा नहीं मिला जो पाकिस्तान के कब्जे में चले गये हैं। साफ़ जाहिर होता है कि सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे में चले गए इनके घरों और जमीनों का मुआवजा इसलिए नहीं दिया ताकि पाकिस्तान को यह संदेश न जाए कि भारत ने उस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ दिया है।
लेकिन इनका क्या दोष जिन्हें आप राज्य का मानते तो हैं लेकिन नागरिक अधिकार नहीं देते। सूबे के एक हिस्से में कैद ये लोग पूरे सूबे में क्यों नहीं पाये जाते ये सवाल इनके पुनर्वास के साथ ही बुनियाद में उठता रहेगा।
-भाग 5 में जारी....
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