भारत 'से' नहीं ! भारत 'में' आजादी :

पंडित नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल तीन गैर कांग्रेसी लोगों में बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर एक वकील, विधि विशेषज्ञ के तौर पर और दूसरे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बंगाल के नामी राजनीतिज्ञ, हिन्दू महा सभा के नेता। तीसरे आर के सनमुखम चेट्टी, मद्रास के व्यापारी, आर्थिक क्षेत्र के जानकार थे।

ये तीनों भारतीय आजादी की लड़ाई में कभी भी जेल नहीं गए।

इनमे से एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तथाकथित संदिग्ध मृत्यु / हत्या, आजाद भारत के साठ के दशक तक रहे गुलाम जम्मू-कश्मीर में हुई। एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे - यह नारा था डॉ मुखर्जी का जो कश्मीर में तिरंगा न फहराने और अलग प्रधानमन्त्री होने के विरोध में था। इस तरह एक निशान, एक प्रधान, एक विधान के नारे के साथ चलो श्रीनगर आंदोलन से कश्मीर को जमीन पर आजाद करवाने वाले पहले शहीद हुए इतिहास में। हकीकत यह भी है कि बंगाल में अगर डॉ मुखर्जी न होते तो 47 के बटवारे में पूरा बंगाल पूर्वी पाकिस्तान हुआ होता।

दूसरे बाबा साहेब ने : संविधान निर्माता के तौर पर अपनी योग्यता का परिचय दिया। सबसे महत्त्व की बात जो उनके सामाजिक समता.. अवधारणा की मूल आत्मा थी 'समान नागरिक आचार संहिता (यूनीफार्म सिविल कोड) जिसके बनाये जाने की शुरुआत आजादी से पहले ही हो गयी थी और उन्होंने इसे पारित कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी भी शुरू कर दिया था। इस बीच पण्डित नेहरू से इस मसले पर मतभेद, असहयोग और मुस्लिम विरोध के बाद बाबा साहेब ने हिंदुओं के लिए समान संहिता (हिंदू कोड) बनाने के लिए अथक प्रयास शुरू किया।

शुरू में उन्हें नेहरू का सहयोग मिला लेकिन बाद में हिंदू नेताओं के जबरदस्त आंदोलन के कारण पंडित जी मुस्लिम कोड की तरह यहां भी पीछे हो गए और सहयोग बन्द कर दिया। बाद में 1955 में हिंदू कोड तो नहीं लेकिन हिंदुओं के लिए : हिंदू मैरेज एक्ट 1955, हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 और हिंदू अडॉप्टेशन एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956 बना और हिंदुओं में ब्याप्त विभिन्न रीति-रिवाजों, जातीय विषमताओं का कानूनी तौर पर अंत हुआ और हिंदुओ में जातीय असामनता कानूनी तौर पर आईपीसी की धारा में संज्ञेय अपराध हुआ।

'एक देश-एक कानून' के महती विषय और अपने ही रचे संविधान की धारा और सामाजिक समता और न्याय की मूल आत्मा अनुच्छेद 44 को जमीन पर उतारने के लिए सत्ता में रहते बाबा साहेब का यह अंतिम प्रयास था। अक्टूबर 1951 में हिन्दू कोड से पहले ही उन्होंने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और शेड्यूल कॉस्ट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया पार्टी को एक बार फिर सक्रिय कर भारतीय गणतंत्र, जिसके वे रचयिता थे... के पहले आम चुनाव 1952 में भाग लिया, अपने सभी प्रत्याशियों सहित खुद भी एक सामान्य से दूध वाले युवा कजलेकर से हार गए।

इस तरह साफ़ देखा जा सकता है कि 1947 में धार्मिक आधार पर देश के दो हिस्से करने के बाद जम्मू-कश्मीर में साठ के दशक तक अधूरी आजादी के सफेद कबूतर उड़ाए जाते रहे जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के खून ने संवैधानिक तिरंगे में रंगा। दिखता साफ यह भी है कि 'एक देश-एक कानून' को संवैधानिक जमीन देने के बाद... लागू करने की आजीवन पैरवी के जरिये वो रास्ता दिखाया पचास के दशक में, समान नागरिक संहिता और फिर हिंदू कोड के जरिये.. बाबा साहेब अम्बेडकर ने।

आज सत्ता में बैठी सरकार , उसकी पार्टी के घोषित कार्यक्रम में है 'एक देश-एक कानून' और उसने आजाद भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय संविधान के इस प्रावधान को लागू करने पर देश की सर्वोच्च विधि परामर्शदायी संस्था 'राष्ट्रीय विधि आयोग' (नेशनल लॉ कमीशन) से उनकी राय माँगा है। यह सही है कि आजादी के बाद से ही समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट इस पर अपनी प्रतिबद्धता दिखाता रहा है और अभी एक ताजा.. तीन तलाक के मुकदमे में सरकार को अपना पक्ष भी रखना है, जो उस लगातार चलते सिलसिले की कड़ी है जिसे सुप्रीम कोर्ट चलाती रही है समान नागरिक संहिता के लिए देश में।

जो पहल सत्ता में रहते बाबा साहेब ने पचास के दशक में की, जिस पर चलते हुए देश ने साठ के दशक में... कश्मीर में एक निशान-एक प्रधान पाया, क्या उसी पहल को एक सत्ताधारी दल और सरकार द्वारा आगे बढ़ाना संविधान निर्माता बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने का मंगल संकल्प नहीं कहा जाना चाहिए ?

यकीनन करना चाहिए हमे स्वागत किसी भी ऐसी संवैधानिक व्यवस्था की जो हमें अवसर, न्याय, विधान, समाज में किसी भी स्तर की बराबरी का अधिकार सौंपता हो। असल मायनों की आज़ादी होगी यह जिसे संविधान से लड़ के नहीं..... उसकी सत्तर साल से सोई धारा 44 को जगा कर हासिल होगी। रास्ते मजहबी-जातिगत समानता से आर्टिकल 370 तक समानता की आज़ादी तक जाते हैं, आपके-हमारे घर के पड़ोस के हरिजन बस्ती तक के सामाजिक बदलाव तक को साथ लिए, बदलाव में समग्रता के सिद्धांत का भाव लिए।

कहिये : लोकतांत्रिक दायरे में लड़ के लेंगे आजादी, हमें चाहिए असामनता, भेदभाव से आज़ादी। भारत में सब एक बराबर- इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।

अवनीश पी एन शर्मा

Comments

Popular posts from this blog

चंबल वाले डाकू छविराम से मथुरा वाले रामबृक्ष यादव तक की समाजवादी यात्रा और नेता जी की टूटी उंगली :

स्वतंत्रता के बाद कला संस्कृति में वैचारिक पक्षपात एवं मोदी सरकार में पारदर्शिता :

महज एक कैम्पस भर बिसात वाले वामपंथ ने आखिर जेनयू में हराया किसको ?