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चंबल वाले डाकू छविराम से मथुरा वाले रामबृक्ष यादव तक की समाजवादी यात्रा और नेता जी की टूटी उंगली :

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बात शुरू होती है साल 1980-82 से। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. वी. पी. सिंह ने दस्यु उन्मूलन का अभियान शुरू किया और खास कर चंबल के बीहड़ों  के डाकूओं के इनकाउंटर शुरू हुए। इसी क्रम में मार्च 1982 में कुख्यात डाकू छविराम को उसके 13 गैंग सदस्यों के साथ इनकाउंटर में मार दिया गया। छविराम का गिरोह बड़ा था और इनकाउंटर के बाद भी उस गिरोह के कई सदस्य और सफेदपोश मददगार बचे रह गए थे। उसी लिस्ट में समाजवादी पुरुष श्री शिवपाल सिंह यादव जी भी शामिल थे।  अब चूंकि वी पी सिंह दस्यु उन्मूलन अभियान को लेकर बेहद सख्त थे और यहां तक कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री और समाजवादी शिखर पुरुष श्री मुलायम सिंह जी का नाम भी इनकाउंटर की लिस्ट में डाल दिया था। सो आदरणीय शिवपाल जी कैसे बचते! हालांकि तब इनका कद इतना भी बड़ा नहीं था कि आपका नाम इनकाउंटर की लिस्ट में आता। लेकिन इतने सक्रिय तो थे ही घर-द्वार छोड़ कर फरार रहें। ऐसा हुआ भी और शिवपाल जी अपने गांव सैफई से फरार होकर नजदीक के ही एक मक्के के बड़े खेत में अपना डेरा जमा कर जमीनी समाजवादी चिंतन और साधना में रमने को मजबूर

पेकिंग दूर दिल्ली नजदीक है :

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"दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक है" "चीन से मुक्तिवाहिनी आ रही है हमें आज़ाद कराने" जैसे नारों के गर्भ ठहरने की कल्पना में भूल कर भी मत डूबने की कोशिश करना भारतीय वामपंथियों और पाखंडी शुद्धतावादियों जब तुमने भारत-चीन युद्ध साल 1962 के दौरान कलकत्ता और बंगाल भर में 'दिल्ली दूर पेकिंग नजदीक' बोल के कहा 'चीन से मुक्ति वाहिनी आ रही है'! क्योंकि अभी हाल दिल्ली नजदीक है आंकड़ों में।  तीन भारतीय शहीदों के सामने 5 चीनी मरे हैं, घायलों की संख्या ग्यारह से आगे समाचारों में पढ़ते रहने की जरूरत है। देश की विपक्षी पार्टियों द्वारा सरकारों के राजनैतिक विरोध, नारों आदि पर कभी गंभीरता की जरूरत नहीं ये लोकतंत्र के गहने हैं.. श्रृंगार हैं। लेकिन जो मानसिकताएं देश को.. उसके किसी भूभाग को उससे दूर रखने की कल्पना भी करती हों उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए और याद दिलाना चाहिए कि दिल्ली इस बार और भी बहुत तरीकों से नजदीक है : - इस दफा न भारतीय सेना ने पीटी शू पहने हैं न ही देश के रक्षा कारखाने चीनी मिट्टी के कप-प्लेट, खिलौने बना रहे बल्कि.. पूर्वोत्तर अरुणाचल से लेकर उत्तर तक एलएसी प

काशी का क्योटो होना

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श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के काम के तहत अधिग्रहित भवनों के तोड़े जाने के दौरान हैरान करने वाली तस्वीरे सामने आ रही हैं। जिसमें चंद्रगुप्त काल से लेकर लगायत मंदिरों सहित हजारों साल से दुनिया के लिये गुम हो चुके प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आ रहें हैं। दुःख और शर्म की बात यह है कि इन प्राचीन मंदिरों का गुम होना किसी मुगल या विदेशी आक्रांताओं की वजह से नहीं हुआ। ऐसा प्राचीन काशीविश्वनाथ मंदिर परिसर के इर्दगिर्द खुद को पंडे-पुजारी-महंथ और पुरातन स्थानीय निवासी कहने वालों के द्वारा प्राचीन मंदिरों को छुपाते हुए उसके आवरण के रूप में, भवन-दूकानें-धर्मशालायें बना कर अवैध सांस्कृतिक-पौराणिक-धार्मिक-ऐतिहासिक कब्जेधारियों और अतिक्रमणकारियों के स्वार्थी नीयत के चलते हुआ है। दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत नगरी काशी के गर्भ में कई इतिहास दफ़्न हैं। ऐसे ही कई इतिहास विश्वनाथ कारीडोर योजना में निकलकर के अब सामने आ रहे हैं। बहुत से ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर इस कॉरिडोर के बनने के बाद सामने आये हैं, जिन्‍हें हजारों साल से भुलाया जा चुका है। श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में कुछ मंदिर उतने ही पुर

हाथी मेरे साथी पर पशुवत केरल :

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ईश्वर की धरती जो अब भारत में एकमात्र कम्युनिस्ट सत्ता की धरती भी रह गयी केरल में राजनीतिक.. खासकर चुनावी हिंसा, हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है। साल 2012 में सीपीएम के नेता रहे टी.पी. चंद्रसेखरन की काट-काट कर की गई बर्बर हत्या इसी  सिलसिले की कड़ी कही जायेगी। साल 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले और वाम एलडीएफ की जीत के बाद भी हिंसा-हत्या का सिलसिला कन्नूर तक चल ही रहा था। इन तमाम सालों में राजनीतिक हिंसा, हत्याओं के साथ विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ धर्मिक हिंसा, हत्याओं के भी सिलसिले आम हैं। इस बीच बताते चलें... चौंकिएगा नहीं, राजनैतिक विरोध में टी.पी. चंद्रसेखरन की साल 2012 में क्रूर और मध्ययुगीन शैली ये यह हत्या, कम्युनिस्ट पार्टी... सीपीएम की ही तरफ़ से की गई, वजह ये कि चंद्रशेखरन ने पार्टी की नीतियों की आलोचना कर एक दूसरी पार्टी, 'रेवेल्यूश्नरी मार्कसिस्ट पार्टी' बना ली थी। "सीपीएम लोगों की ज़िंदगी में घुस गया है, यहां तक की गांववालों को अपने घर की शादी में कांग्रेस-समर्थक दोस्त तक को बुलाने की आज़ादी नहीं है, अब ऐसे में लोगों और असलहे के बल के साथ आरएसएस अपना प्रचार करेग

राहुल जी खूब फोटोजेनिक हैं।

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बताते हैं जब आप डायपर मतलब लंगोटी एज में थे तो अक्सर अपनी दादी के प्रधानमंत्री आवास में बने सर्वेंट क्वाटर्स की तरफ बकइयाँ खींचते हुए चले जाते थे और दादी के गरीबी हटाओ योजना के तहत उनकी गरीबी हटा आते थे। चूंकि जमीन पर घिसनी काटते हुए नन्हे राहुल का डायपर उतर जाता था इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस समय की कोई तस्वीर न ली जाती थी वरना देश की गरीबी कभी की हट चुकी होती। बाल राहुल जी जब कुछ और बड़े हुए और डायपर उतरने की अवस्था जाती रही... यानी 2008 में तब आपको अपनी सरकार-सरकार खेलना बहुत पसंद था और आप कुछ प्लास्टिक के खिलौने आदि गाड़ी में रख, कैमरा फोटोग्राफरों के साथ पिक हंटिंग यानी तस्वीर शिकार पर मजदूरों, किसानों, दलित-आदिवासियों के बीच निकल जाते थे। एक बार जयपुर राजस्थान की तरफ ऐसे ही एक तस्वीर शिकार पर निकले राहुल जी पिंजनी गांव पहुंचे। उन्होंने एक आदिवासी लड़की को अपने घर का पोखरा मतलब तालाब खोदने में परिवार की मदत करते देखा। बाल राहुल यह देखते ही मिट्टी-मिट्टी खेलने के लिए मचल गए। अपनी प्लास्टिक की निजी टोकरी गाड़ी से निकाल उसमें मुट्ठी भर भारत माता को स्टाफ से डलवाया और युवती के पीछे

प्रियंका "वाड्रा" की बस में राहुल "गांधी" नहीं सवार; क्या कांग्रेस के भीतर है स्टेयरिंग और ड्राइविंग सीट की तकरार!

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प्रियंका "वाड्रा" की बस में राहुल "गांधी" नहीं सवार; क्या कांग्रेस के भीतर है स्टेयरिंग और ड्राइविंग सीट की तकरार! प्रियंका वाड्रा के कोरोनाकाल बस कांड के इस पूरे दौरान क्या भूतपूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहीं भी दिखे? प्रियंका की इस बस राजनीति के दौरान स्वयं राहुल गांधी का कोई ट्वीट, बयान आदि देखने को नहीं मिला अभी तक। राहुल के नजदीकी समझे जाने वाले किसी कांग्रेस नेता से लेकर कांग्रेस आईटी टीम तक के किसी कर्मचारी ने कोई सार्वजनिक बयान दिया हो यह देखने में नहीं आया। जो भी लोग राजनीतिक मामलों से परिचित हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि कभी युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आरपीएन सिंह राहुल टीम से आते हैं और उनके रहते उन्हीं के जिले कुशीनगर के अजय कुमार सिंह लल्लू को उत्तर प्रदेश कांग्रेस बनाये जाने के पीछे अपनी मां सोनिया गांधी के के जरिये प्रियंका ही रहीं। यही वजह है कि सभी ने यूपी कांग्रेस अध्यक्ष लल्लू को सड़क से लेकर लॉकअप, जेल तक घिसटते-कपड़े फाड़ते देखा। लल्लू के अलावा वाड्रा के घोषित चेले पूनिया और गौरव पांधी... इसके अलावा लगभग कांग्रेसियों ने प्रियंका की बस

देश का समभाव :

1887 में ही अलीगढ़ आंदोलन के दौरान सर सैयद अहमद खां ने अपने भाषण में कह दिया "हिन्दू और मुस्लिम दो अलग-अलग कौमें हैं और साथ-साथ नहीं रह सकतीं"। आगे चल कर मो0 अली जिन्ना ने कहा था हिन्दू और मुसलमान दो अलग "राष्ट्र" हैं जो कभी एक साथ नहीं रह सकते इसलिए मुसलमानों को अलग होमलैंड चाहिए। स्पष्ट है कि विभाजन मुसलमानों की मांग पर हुआ था और बहुसंख्यक हिन्दुओं ने इसका विरोध किया था। क्या आप और हम आज भी यह महसूस करते हैं कि जिन्ना और खां साहेब की बातें सही थीं ? पहली नजर में बहुत बड़ा आरोप दिखाई देता है यह... इसलिए बात कायदे से समझनी पड़ेगी और आधार देना होगा।  चलिए हम ये मान लेते हैं या हमें मान लेना चाहिए (मैं निजी तौर पे मानता भी हूँ) कि भारत के सन्दर्भ में जिन्ना और सर सैयद अहमद की बातें फ्रॉड थीं, बकवास थीं और वे दोनों महा-पापी थे जो उन्होंने ऐसी गंदी बात सोची.. कही। इसका सबूत है कि हमने नेहरू जी के छाया तले (जैसा की स्थापित है) भारत को सेक्युलर, साँझी विरासत वाला ऐसा देश बनाया जिसमे हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई एंड सो ऑन.. सब भाई-भाई।  'हमने देश के नागरिकों के न